पत्थर के भगवान

पत्थर के भगवान , pathar ke bhagwan poem
पत्थर के भगवान















चलना पडा घर छोड के अब, पत्थर के भगवान को ।
देख ले अब घूम घूम के, जालिमे इंसान को।।
जो रहबरी और राहजनी से, लोगो को भरमाते है।
जो लुटते भगवान को, आशीष भी फरमाते है।।
छानते है खाक अब वो, मंदिरों को छोड के ।
शैतान के संग चल पडे, भक्तो से नाता तोड के ।।
अब सोचते है हम यहॉ कि, खेल कौन दिखलायेगा ।
जो बेसुधे शैतान के, हाथों खुद खेला जाएगा।।

लेखक : डा. बैजनाथ उपाध्याय
मो. : 9955754359

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