खून के आंसू


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आतंक की ज्वाला चली , ममता की सीना चिर के।
खून की होली मनाता , देखता ना फिर के।।
नफरत के आगों में ओ ममता , राख होती जा  रही।
कदम जहाँ उनकी पड़े  , बचपन वहा मुरझा रही।।
सिर काटते है यहाँ , बहती है धारा खून की।
मनुष्यता बर्बाद हो , ऐसा चढ़ा है धुन की।।
            धिक्कारती धरती तुम्हे।, रोके है बर्षा आग की।
क्रोध को आकाश रोके , क्या है हमसे लाग की।।
तूफान ठिठका देख कर, अटका कही है पुण्य भी। 
पाताल डगमग कर रहा , एक रूप इसका शून्य भी।।
            लहरे समन्दर की उठे , जो लौटती मजधार को।
ममता कही खौला रही , पिता है तेरे खार को।।
भूचाल जब भी आ गया , न तु रहा न राम ही।
ढह गये पर्वत अगर , न वो रहा इश्लाम ही।।
चिल्ला रहा भगवान को , अल्लाह को पुकारता।
क्या पास तेरे है नहीं ,  जो खोजते तु हारता।।
तुम हो मुसाफिर रोक लो, निज हृदय के तूफान को।
नहीं जानते किसी धर्म को,  फिर क्यों लुटाते जान को।।

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