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Today's thoughts.

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रिस्वत मनुस्य को और रसायनिक खाद मिट्टी को , पहले हरा-भरा और बाद में नीरस और निस्तेज कर देते है |

कैदी और कोयल

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Kaidi aur koyal मै नहीं चाहता ए कोयल , की इस बीरही को तु जलाओ। मै रात। भर जलु बिरह में , तु सुबह में गाना गाओ।। हम तो कैदी कैद में रहते , तु तो बहुत दूर जाती हो। तुम हो कोयल मन लुभावनी , तु क्यों हम सताती हो।। कैदी और कोकिल में बोलो , मेल कहां हो सकती है। मेरे पास वो पंख कहां , जाने की कहां शक्ति है।। हम यहां से जाना चाहें , तु स्वयं क्यों आती हो। इस बिरही की बिरह व्यथा को , तु क्यों याद दिलाती हो।। ए कोयल तु जब भी जाना , एक संदेश तु लेती जाना। इस बिरही की बिरह व्यथा को , उस बिरहन तक पहुंचाना।। जिस तरह भवर में फंसा एक नाविक , चाह लीये मन साहील की। हम बिरही जलकर भी जीते , चाह लिए मन मंज़िल की।। दूर देश जो भी हो मेरा , यह संदेश पहुंचा देना। कौन खुशी और क्या ग़म मेरा , जाकर के बतला देना।। बैजनाथ को याद नहीं कुछ , याद पड़े तो तु बतलाना। एक उपकार तु मुझपर करना , फिर वापस तु लौट ना आना।।

पत्थर के भगवान

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पत्थर के भगवान चलना पडा घर छोड के अब , पत्थर के भगवान को । देख ले अब घूम घूम के , जालि मे इंसान को।। जो रहबरी और राहजनी से , लोगो को भरमाते है। जो लुटते भगवान को , आशीष भी फरमाते है।। छानते है खाक अब वो , मंदिरों को छोड के । शैतान के संग चल पडे , भक्तो से नाता तोड के ।। अब सोचते है हम यहॉ कि, खेल कौन दि खलायेगा । जो बेसुधे शैतान के , हाथों खु द खेला जाएगा।। लेखक : डा.   बैजनाथ उपाध्याय मो.  : 9955754359

खून के आंसू

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आतंक की ज्वाला चली , ममता की सीना चिर के। खून की होली मनाता , देखता ना फिर के।। नफरत के आगों में ओ ममता , राख होती जा   रही। कदम जहाँ उनकी पड़े   , बचपन वहा मुरझा रही।। सिर काटते है यहाँ , बहती है धारा खून की। मनुष्यता बर्बाद हो , ऐसा चढ़ा है धुन की।।             धिक्कारती धरती तुम्हे। , रोके है बर्षा आग की। क्रोध को आकाश रोके , क्या है हमसे लाग की।। तूफान ठिठका देख कर , अटका कही है पुण्य भी।   पाताल डगमग कर रहा , एक रूप इसका शून्य भी।।             लहरे समन्दर की उठे , जो लौटती मजधार को। ममता कही खौला रही , पिता है तेरे खार को।। भूचाल जब भी आ गया , न तु रहा न राम ही। ढह गये पर्वत अगर , न वो रहा इश्लाम ही।। चिल्ला रहा भगवान को , अल्लाह को पुकारता। क्या पास तेरे है नहीं ,   जो खोजते तु हारता।। तुम हो मुसाफिर रोक लो , निज हृदय के तूफान को। नहीं जानते किसी धर्म को ,   फिर क्यों लुटाते जान को।।

स्व0 अटल बिहारी बाजपेयी जी को श्रद्धांजलि के दो शब्द!

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स्तब्ध भारत देखता, नैनो से आंसू झर रहे थे। 16/8/18 को जब अटल बिहारी मर रहे थे।।            एक अकेला चल दिए,  फिर कारवाँ बनता गया।           हर गली हर शहर में,  कमल पूष्प खिलता गया।।  जश्ने आज़ादी मन रही थी, प्राण को रोके रहे।  भीष्म पितामह के तरह ही, काल को टोके रहे।।          श्रधांजलि देने के लायक,  शब्द भी मिलते नही।          कुछ तो ऐसे फूल हैं जो,  हर समय खिलते नहीं।।