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Showing posts from April, 2019

कैदी और कोयल

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Kaidi aur koyal मै नहीं चाहता ए कोयल , की इस बीरही को तु जलाओ। मै रात। भर जलु बिरह में , तु सुबह में गाना गाओ।। हम तो कैदी कैद में रहते , तु तो बहुत दूर जाती हो। तुम हो कोयल मन लुभावनी , तु क्यों हम सताती हो।। कैदी और कोकिल में बोलो , मेल कहां हो सकती है। मेरे पास वो पंख कहां , जाने की कहां शक्ति है।। हम यहां से जाना चाहें , तु स्वयं क्यों आती हो। इस बिरही की बिरह व्यथा को , तु क्यों याद दिलाती हो।। ए कोयल तु जब भी जाना , एक संदेश तु लेती जाना। इस बिरही की बिरह व्यथा को , उस बिरहन तक पहुंचाना।। जिस तरह भवर में फंसा एक नाविक , चाह लीये मन साहील की। हम बिरही जलकर भी जीते , चाह लिए मन मंज़िल की।। दूर देश जो भी हो मेरा , यह संदेश पहुंचा देना। कौन खुशी और क्या ग़म मेरा , जाकर के बतला देना।। बैजनाथ को याद नहीं कुछ , याद पड़े तो तु बतलाना। एक उपकार तु मुझपर करना , फिर वापस तु लौट ना आना।।

पत्थर के भगवान

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पत्थर के भगवान चलना पडा घर छोड के अब , पत्थर के भगवान को । देख ले अब घूम घूम के , जालि मे इंसान को।। जो रहबरी और राहजनी से , लोगो को भरमाते है। जो लुटते भगवान को , आशीष भी फरमाते है।। छानते है खाक अब वो , मंदिरों को छोड के । शैतान के संग चल पडे , भक्तो से नाता तोड के ।। अब सोचते है हम यहॉ कि, खेल कौन दि खलायेगा । जो बेसुधे शैतान के , हाथों खु द खेला जाएगा।। लेखक : डा.   बैजनाथ उपाध्याय मो.  : 9955754359